Dalits socially boycotted: हाल ही में आंध्र प्रदेश से एक चौकाने वाला मामला सामने आया है. जहाँ सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के एक गाँव में कथित सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव से जुड़ी एक याचिका खारिज कर दी. जिसके बाद से दलित समुदाय के लोगो का कहना है वह इस मामले को उच्च न्यायालय में ले जाए या अन्य वैधानिक कानूनों का सहारा लेंगे. तो चलिए आपको इस लेख में पूरे मामले के बारे में विस्तार से बताते हैं.
दलित समाज की याचिका खारिज
भारत में, जहाँ जाति-आधारित भेदभाव आज भी एक कड़वी सच्चाई है,आज भी समाज में दलितों के साथ भेदभाव अत्याचार जैसे मामले सामने आते है। ऐसा ही एक मामला आंध्र प्रदेश से सामने आया है. जहाँ सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले ने एक अहम बहस छेड़ दी है. दरअसल, दलित समाज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से साफ इंकार कर दिया है. दरअसल, आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के पीतापुरम (Pithapuram) विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले एक गांव के दलित कार्यकर्ता दसारी चेन्ना कैसावुल्लु ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी कि गांव में जाति के आधार पर शोषण किया जा रहा है और सामाजिक रूप से दलितों का बहिष्कार हो रहा है.
गांव में दलितों के उत्पीड़न
जिससे वहां रहने वाले दलितों के लिए जीना बेहद मुश्किल हो रहा है. वहीं, याचिकाकर्ता ने ये भी कहा कि गांव में दलितों के उत्पीड़न या फिर उनके साथ होने वाली बर्बरता को लेकर पुलिस भी एफआईआर दर्ज नहीं करती है. उन्होंने एक दलित बिजली कर्मचारी की मौत के बारे में बात करते हुए बताया कि अभी तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है औऱ न ही मृत्यु होने पर परिवार को मुआवजा दिया गया है. जिस कारण वो दलित परिवार आज कई मुश्किलें झेल रहा है.
दलित समुदाय का सामाजिक बहिष्कार
वो बताते हैं कि उत्पीड़न का विरोध करने पर अब दलित समुदाय (Dalit community) का सामाजिक बहिष्कार शुरु कर दिया गया है. लेकिन याचिकाकर्ता की याचिका को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की दो जजों की बेंच ने इस मामले में सुनवाई करने से इनकार कर दिया. कोर्ट की ओर से सुझाव दिया गया कि वे इस मामले के हाईकोर्ट में ले कर जाये या फिर किसी एसपी या किसी और कानूनी ताकतों का सहारा लिया लें
वही मीडिया रिपोर्ट्स से मिली जानकारी के अनुसार बताया जा रहा है कि अप्रैल में गाँव में एक इलेक्ट्रीशियन की अचानक मौत हो गई थी. मृतक दलित समुदाय से था और कापू जाति के एक व्यक्ति के घर पर काम कर रहा था. समझौते के अनुसार मुआवज़ा न मिलने पर दलित समुदाय ने विरोध प्रदर्शन किया, जिसके बाद कथित तौर पर पूरे समुदाय का गाँव में सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया.