राजधानी एक्सप्रेस के पीछे बिहार के दलित नेता डॉ. राम सुभग सिंह की दूरदर्शी सोच

Rajdhani Express, India First Rajdhani Express
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India’s first Rajdhani Express: भारत की पहली राजधानी एक्सप्रेस (Rajdhani Express) 1969 में शुरू हुई थी और हावड़ा (कोलकाता) (Howrah Kolkata) और नई दिल्ली (New Delhi) के बीच चलती थी। लेकिन क्या आप जानते है ये बिहार (Bihar) के किस दलित नेता (Dalit leader) के दिमाग की उपज थी जो आज के समय में ये  में भी राजधानी एक्सप्रेस शुरू हुयी थी। अगर नहीं तो चलिए आपको इस लेख में विस्तार के साथ बताते हैं।

कौन है डॉ. राम सुभग सिंह?

रेलवे इतिहास से जुड़ी जानकारी के अनुसार, राजधानी एक्सप्रेस भारतीय रेलवे की एक प्रतिष्ठित और महत्वपूर्ण रेल सेवा है, जो भारत की राजधानी दिल्ली को देश के अन्य राज्यों की राजधानियों से जोड़ती है। राजधानी एक्सप्रेस की शुरुआत के समय डॉ. राम सुभग सिंह (Dr. Ram Subhag Singh) रेल मंत्री थे। वे बक्सर, बिहार से सांसद थे।

जिन्होंने भारत सरकार में विभिन्न पदों पर कार्य किया। उन्हें पूर्व केंद्रीय डाक, संचार और रेल मंत्री (Railway Minister) के रूप में जाना जाता है। बतौर रेल मंत्री उन्होंने भारतीय रेलवे के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। राजधानी एक्सप्रेस की शुरुआत में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।

भारत की पहली राजधानी एक्सप्रेस

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (Delhi)  को अन्य राज्यों की राजधानियों से जोड़ने के लिए एक तेज़ गति वाली, उच्च श्रेणी की रेल सेवा (Rail Sewa) शुरू करने का विचार उनका ही था। इसी उद्देश्य से, 19 फरवरी, 1969 को उन्होंने अपने बजट भाषण में राजधानी एक्सप्रेस को शुरू करने की घोषणा की थी, और 1 मार्च, 1969 को पहली राजधानी एक्सप्रेस नई दिल्ली से हावड़ा के बीच चली थी।

इस ट्रेन को शुरू करने का मुख्य उद्देश्य यात्रियों को कम समय में लंबी दूरी की यात्रा करने और अपनी यात्रा के दौरान सभी आधुनिक सुविधाओं का आनंद लेने में सक्षम बनाना था। अपनी तेज़ गति और सुविधा के कारण, यह ट्रेन उस समय बहुत लोकप्रिय हो गई और टिकटों की भारी मांग थी। उनकी पहल के बाद, दिल्ली को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने के लिए धीरे-धीरे अन्य राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनें शुरू की गईं, जिससे भारत का रेल नेटवर्क (Rail Network) और भी सुव्यवस्थित हुआ।

उस समय टिकटों की खूब होड़

जब राजधानी एक्सप्रेस शुरू हुई, तो यह एक बिल्कुल नया अनुभव था। इसकी तेज़ रफ़्तार, आरामदायक सीटें और वातानुकूलित वातावरण सबका ध्यान आकर्षित कर रहे थे। शुरुआती दिनों में, टिकटों की इतनी ज़्यादा मांग थी कि महीनों पहले से बुकिंग करवानी पड़ती थी। यह सिर्फ़ एक ट्रेन नहीं, बल्कि भारतीय रेलवे की एक नई पहचान बन गई, जिसने समय में बदलाव का संकेत दिया।

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