Land dispute: हाल ही में उत्तर प्रदेश (UP) के इटवा (Etawah) से एक चौकाने वाली खबर सामने आई है। जहाँ करीब 500 दलित परिवारों की जमीन को सेंचुअरी विभाग (Sanctuary Department) ने कब्जाने की कोशिश की है। जिसके बाद दलित समुदाय (Dalit community) में तनाव का माहौल बना हुआ है। वही गाँव के रहने वाले कुछ लोगो ने इस मामले की शिकायत दर्ज करवाई है। जिसके तर्ज पर मामले की जांच हो रही है। तो चलिए आपको इस लेख में पूरे मामले के बारे में विस्तार से बातते है
दलितों की जमीन पर कब्जा
पुराने समय से ही चलता आया है कि मनुवादी दलितों की जमीन पर जोर जबरदस्ती करके अपना कब्ज़ा कर लेते थे. आज भी कुछ जगहों में यही स्थिति है जिस कारण दलितों का जीना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसा ही एक मामला यूपी (Uttar Pradesh) के इटावा से सामने आया है. जहां करीब 500 दलित परिवारों की जमीन को सेंचुअरी विभाग ने कब्जाने की कोशिश की है, जी हां, ये खबर इटावा के चकरनगर (Chakrnagar) के रानीपुरा (Ranipura) गांव की है, जहां सेंचुअरी विभाग (Sanctuary Department) ने 500 दलित परिवारो की करीब 95 एकड़ जमीन पर कब्जा करने और उसले वन विभाग का बता तक हथियाने की कोशिश की है, जिसके बाद दलित परिवारों और सेंचुअरी विभाग के बीच तनाव का माहौल बना हुआ है।
दलित परिवारों का जमीन पर मालिकाना हक
एक तरफ विभाग का कहना है कि ये जमीन वन विभाग की है जबकि ग्रामीणों का कहना है कि वो इस जमीन पर करीब 1912 से खेती कर रहे है। उनके पूर्वजों ने इस बंजर जमीन पर खेती करके उसे उपजाऊ बनाया है, और अब वन विभाग उसे अपना बता रहा है। इससे पहले भी विभाग ने 1973 में गढैया ग्राम प्रधान तुलाराम ने 35 एकड़ और सहसों ग्राम प्रधान रामशाह तिवारी ने 70 एकड़ जमीन सेंचुअरी विभाग को दी थी। लेकिन तब समझौता हो गया था और फिर 28 अक्टूबर 1992 को दस ग्राम प्रधानों की मौजूदगी में 105 एकड़ जमीन को वन विभाग को दिया गया और उसके बदले रानीपुरा की वर्तमान जमीन गांव वालों को दी गई थी।
पीड़ित परिवार ने लगाई न्याय की गुहार
लेकिन अब फिर से उन्हें परेशान किया जा रहा है। एक तरफ ग्रामीणों ने जिलाधिकारी (District Magistrate) शुभ्रांत कुमार शुक्ला से उनके लिए न्याय की गुहार लगाई है तो वहीं एसडीएम (SDM) ब्रह्मानंद कठेरिया ने बताया कि गांव के लोगों के जमीन के पुराने कागजात तो है लेकिन पट्टे का प्रमाण या खतौनी में नाम दर्ज नहीं है। हालांकि तनाव को देख कर फिलहाल के लिए पैमाईश रोक दी गई है लेकिन जांच होने के बाद ग्रामीणों को जमीन खाली करनी ही पड़ेगी।