Andhra Pradesh: गांव में दलितों का बहिष्कार, पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल

MADHYA PRADESH, Caste Discrimination
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Andhra Pradesh news:  बीते कुछ समय पहले आंध्र प्रदेश के एक गाँव से मानवता को शर्म शार करने वाली खरबर सामने आई जहा दलितों का बहिष्कार किया गया वही इस मामले मे पुलिस ने कौई  एफआईआर दर्ज नहीं की है, बल्कि इसके बजाय पुलिस ने एक शांति समिति गठित कर दी है। यह घटना काकीनाडा जिले के मल्लम गांव में हुई। तो चलिये आपको इस लेख मे पूरे मामले के बारे मे बताते है।

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का आरोप

जाने क्या है पूरा मामला

भारत में दलितों पर अत्याचार रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं, हर दिन कोई न कोई खबर सामने आती रहती है। ऐसी ही एक खबर फिर सामने आई है, जहां आंध्र प्रदेश के एक गांव में दलितों का बहिष्कार किया गया है, यह सब एक दलित इलेक्ट्रीशियन की मौत के बाद शुरू हुआ।

दरअसल, मल्लम गांव के दलित इलेक्ट्रीशियन पल्लप्पु सुरेश बाबू की बिजली का झटका लगने से मौत हो गई।इसके बाद उनके समुदाय के लोगों ने मकान मालिक से मुआवजे की मांग की। मुआवजे की मांग से नाराज गांव के प्रभावशाली कापू जाति के लोगों ने कथित तौर पर पूरे दलित समुदाय का सामाजिक बहिष्कार कर दिया।

पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं करी 

दरअसल, मानवाधिकार समूहों ने कथित बहिष्कार करने वालों के खिलाफ एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत कानूनी मामला दर्ज करने के बजाय जल्दबाजी में “शांति समितियां” बनाने के लिए अधिकारियों की कड़ी आलोचना की है।

खबरों के अनुसार, कापू समुदाय के सदस्यों ने दलितों को दैनिक जरूरतों का सामान बेचने से दुकानदारों को रोका और उन्हें परिवहन की सुविधा भी नहीं देने दी। दलित महिलाओं को उनके काम पर जाने से मना कर दिया गया। आरोप है कि पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज करने के बजाय एक ‘शांति समिति’ का गठन किया है, जिसकी मानवाधिकार समूहों द्वारा आलोचना की जा रही है।

उनका कहना है कि पुलिस को बहिष्कार करने वालों के खिलाफ एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज करना चाहिए था।

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भेदभाव का पुराना इतिहास

आपको बता दें , इस ममले मे गाँव के पीडितो ने बताया कि दलितों ने गांव में लंबे समय से भेदभाव की शिकायत की है. द वायर से बातचीत में कहा, ‘आज भी दलितों को गांव में बाल कटवाने या शेविंग की सुविधा नहीं मिलती. उन्हें पिथापुरम या काकीनाडा जाना पड़ता है।’

इस गांव में दलितों के खिलाफ हिंसा का इतिहास रहा है। 2002 में सामाजिक कार्यकर्ता राजमणि ने मल्लम में हुई एक घटना के बाद तथ्य-खोज की थी। उन्होंने कहा, ‘मल्लम में एससी/एसटी लोगों की पिटाई और गाली-गलौज कोई नई बात नहीं है। जब दलितों ने 14 अप्रैल, 2022 को अंबेडकर जयंती मनाई, तो उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। जब एक दलित युवक ने इंस्टाग्राम पर जश्न की तस्वीर पोस्ट की, तो कापू के करेडला तरुण नामक युवक ने अपमानजनक टिप्पणी की।’

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