बीते दिन शपथ लेने के बाद जस्टिस गवई ने महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि दी और उन्हें देश और संविधान का मार्गदर्शक बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि संविधान सर्वोच्च है और सभी राज्य सरकारों को इसकी सीमाओं के भीतर काम करना चाहिए। आपको बता दें, उन्हें वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के सेवानिवृत्त होने के बाद इस पद पर नियुक्त किया गया है।
बौद्ध समुदाय से पहले मुख्य न्यायाधीश
जस्टिस गवई ने दलित समुदाय से भारत के दूसरे मुख्य न्यायाधीश के रूप में नया इतिहास रच दिया है। इसके साथ ही वे स्वतंत्रता के बाद बौद्ध समुदाय से आने वाले पहले मुख्य न्यायाधीश भी बन गए हैं। उनका कार्यकाल करीब छह महीने का होगा, जो 23 नवंबर 2025 को समाप्त होगा। यह उनके परिवार और समर्थकों के लिए खास पल रहा है। सीजेआई खन्ना के बाद वे सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। उनकी मां कमलताई ने मीडिया से बातचीत में कहा, “मेरा बेटा साहसी है और उसे कोई झुका नहीं सकता। वह पूरी निष्ठा से देश के नागरिकों को न्याय दिलाएगा।”
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• अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के निर्णय को बरकरार रखना
• नोटबंदी की संवैधानिक वैधता को मान्यता देना
• एससी कोटे में उप-वर्गीकरण को उचित ठहराना
• शराब नीति मामले में के. कविता को जमानत देना
• तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी की आलोचना करना
• न्यायमूर्ति बी.आर. गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उनके पिता आर.एस. गवई राजनीति में एक स्थापित नाम थे। न्यायमूर्ति गवई ने 16 मार्च 1985 को एक वकील के रूप में अपना पेशेवर जीवन शुरू किया। बाद में, उन्होंने 14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाला। अंत में, वे 24 मई 2019 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने।