Medha attacks on BJP: हाल ही में संसदीय समिति की बैठक में आमंत्रित किए जाने के बाद भाजपा सांसदों द्वारा बैठक से बाहर चले जाने के एक दिन बाद, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने बुधवार को पलटवार करते हुए पूछा कि क्या दलितों, आदिवासियों, किसानों और मजदूरों के लिए खड़ा होना अब “राष्ट्र-विरोधी” माना जाएगा। तो चलिए आपको इस लेख में विस्तार से बातते है आखिर मेधा पाटकर ने क्या कहा?
मेधा पाटकर ने बीजेपी सरकार पर निशाना
हाल ही में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर (Medha Patkar) ने बुधवार को भाजपा सांसदों की आलोचना की, जिन्होंने एक दिन पहले संसदीय समिति की बैठक से वॉकआउट कर दिया था, जिसमें उन्हें आमंत्रित किया गया था। जहाँ मेधा पाटकर (Medha Patkar) ने पूछा कि क्या दलितों, आदिवासियों, किसानों और मजदूरों (Dalits, Adivasis, farmers and labourers) के लिए खड़ा होना अब “राष्ट्र-विरोधी” माना जाएगा।
प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने यह सवाल उठाया है कि क्या दलितों और किसानों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाना ‘राष्ट्र-विरोधी’ गतिविधि मानी जाएगी। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश में सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार रक्षकों पर कथित तौर पर राष्ट्र-विरोधी होने का ठप्पा लगाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
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‘‘राष्ट्र-विरोधी होने का आरोप क्यों?
भूमि अधिग्रहण अधिनियम के क्रियान्वयन पर चर्चा के लिए ग्रामीण विकास और पंचायती राज संबंधी संसद की स्थायी समिति की बैठक मंगलवार को अचानक रद्द कर दी गई, क्योंकि भाजपा सांसदों ने समिति द्वारा पाटकर को आमंत्रित करने के निर्णय का विरोध किया। पाटकर ने ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ के बैनर तले गुजरात में सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया था।
मेधा पाटकर ने कहा कि दलित और किसान समाज का अभिन्न अंग हैं और उनके हितों की रक्षा करना राष्ट्रहित में है। उन्होंने कहा कि इन हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए लड़ने वालों को राष्ट्रविरोधी कहना न केवल अनुचित है बल्कि लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के भी खिलाफ है। उन्होंने सरकार से इन मुद्दों पर समावेशी संवाद स्थापित करने और दलितों और किसानों की चिंताओं को दूर करने का आग्रह किया। पाटकर के बयान ने एक बार फिर इस बहस को जन्म दिया है कि विरोध और असहमति को किस हद तक राष्ट्रवाद के दायरे में देखा जाना चाहिए।