Shinde’s Dalit Card: महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजनीति में एक नया समीकरण उभरता दिख रहा है. वही एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ने कथित तौर पर ‘दलित’ कार्ड खेला है, जिससे ठाकरे बंधुओं (उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे) की ‘मराठी एकता’ पर असर पड़ने की आशंका है. इस कदम में शिंदे को संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) के पोते का भी समर्थन मिला है, जो इस राजनीतिक घटनाक्रम को और भी महत्वपूर्ण बना देता है. तो चलिए आपको इस लेख में पूरे मामले के बारे में विस्तार से बताते है.
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दलित वोट साधने की कोशिश
पिछले हफ़्ते उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे दोनों ने एक रैली की और मंच पर हाथ उठाकर संदेश दिया कि हम साथ हैं. इस एकता ने एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना पर सवाल खड़े कर दिए हैं कि अब उनका क्या होगा. वजह ये है कि शिंदे सेना भी मराठी कार्ड खेल रही है और अब ठाकरे बंधु इस मुद्दे पर साथ हैं. ऐसे में एकनाथ शिंदे ने भी आगाह करते हुए नया दाव खेला जहाँ उन्होंने मराठी एकता के ख़िलाफ़ दलित चाल चल दी है. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के पोते आनंदराज अंबेडकर की पार्टी ने रिपब्लिकन सेना से हाथ मिला लिया है.
दरअसल, महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की शिवसेना (Shiv Sena) ने दलितों को साधने की राजनीति शुरु कर दी है और इसमें उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर के पोते को भी अपने साथ मिला लिया है ताकि बाबा साहेब के समर्थकों को साधा जा सके. एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) गुट वाली शिवसेना ने इसके लिए बाबा साहेब अंबेडकर (Baba saheb Ambedkar) के पोते आनंदराज अंबेडकर (Anandraj Ambedkar) की पार्टी रिपब्लिकन सेना के साथ गठबंधन किया है. पिछले दिनों राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे (Raj Thackeray and Uddhav Thackeray) ने 20 सालों बाद साथ आकर राज्य की राजनीति में भूचाल मचा दिया था. अब उसी की काट के रूप से में एकनाथ शिंदे के इस कदम को देखा जा रहा है.
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बाबा साहेब अंबेडकर को दिया क्रेडिट
एकनाथ शिंदे ने कहा कि शिवसेना और रिपब्लिकन सेना दोनो ही सड़कों पर पिछड़े तबके के लोगो के हक के लिए लड़ती हैं. उन्होंने गठबंधन को शिवशक्ति और भीमशक्ति की एकता का प्रतीक बताया है. उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर को क्रेडिट देते हुए कहा कि उनके बनाये संविधान के कारण ही एक दलित नेता उंचे पद तक पहुंच पाया है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह गठबंधन मराठी वोटर्स (Marathi Voters) के साथ साथ दलित वोटर्स को भी अपने पाले में करने के लिए किया गया है. हालांकि, ये इसमें कितना सफल हो पाएंगे यह तो आने वाले वक्त में ही पता चल पाएगा.