MCD सदन में AAP का जोरदार प्रदर्शन, भाजपा पर दलितों के अधिकार छीनने का आरोप

AAP Protest
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AAP Protests in MCD House: दिल्ली नगर निगम (Delhi Municipal Corporation) को लेकर हाल ही में एक बड़ी खबर सामने आई है. जहाँ आम आदमी पार्टी (‘AAP ‘) ने दिल्ली नगर निगम (MCD) सदन में भाजपा के खिलाफ जोरदार प्रोटेस्ट किया. ‘आप’ ने भाजपा (BJP) पर दलितों का हक छीनने का गंभीर आरोप लगाया है. इस दौरान अंकुश नारंग ने कहा कि सत्ता की भूखी भाजपा ने अपना चेयरमैन बनाने के लिए अनुसूचित जाति समिति के सदस्यों की संख्या 35 से घटाकर 21 कर दी है. तो चलिए आपको इस लेख में पूरे मामले को विस्तार से बताते है.

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भाजपा पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया

हाल ही में दिल्ली से चौकाने वाली खबर सामने आयी है. जहां दलितों के उत्पीड़न के मामले बढ़े हैं और दलितों के अधिकारों का हनन भी शुरू हो गया है. जी हां, आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के नेता प्रतिपक्ष ने बीजेपी पर संगीन आरोप लगाते हुए कहा कि बीजेपी दलित विरोधी है. इसका सीधा सबूत है दिल्ली नगर निगम में एससी कमेटी के सदस्यों की संख्या को कम करना. दरअसल, गुरुवार को सिविक सेंटर स्थित एमसीडी मुख्यालय में सदन की विशेष बैठक हुई.

वही मीडिया रिपोर्ट्स से मिली जानकारी के अनुसार बीजेपी दलित प्रत्याशियों को कितना मौका देती है वो दिल्ली में दलित पार्षदों की संख्या बता रही है. चेयरमैन बनाने के लिए 35 सदस्यीय एससी कमेटी होती थी लेकिन चूंकि बीजेपी के पास केवल 9 दलित पार्षद है तो उन्होंने 21 सदस्यीय कमेटी बना दिया. उन्होंने बीजेपी पर आरोप लगाया कि केवल दिल्ली की सत्ता पर बने रहने के लिए बीजेपी ने 14 दलित पार्षदों के अधिकारों का हनन कर दिया. 10 जुलाई को महापौर राजा इकबाल सिंह ने चेयरमैन के चुनाव को रोकने के पीछे जो नोटिस जारी किया था उसका कारण अब क्लीयर हुआ है.

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दलित पार्षदों के अधिकारों का हनन

मेयर ने चेयरमैन चुनने वाली कमेटियों में जो संशोधन किया, वो असल में बीजेपी की दलित विरोधी नीतियों का चिठ्ठा है. आपको बता दे कि एमसीडी चुनावों में दिल्ली में 42 सीटें एससी वर्ग के लिए आरक्षित है, उन 42 एससी सीटों (SC Seats) में से 36 सीटें आम आदमी पार्टी के पार्षदों के पास है. ऐसे में चेयरमैन के चुनाव के लिए बीजेपी ने बड़ा फेरबदल कर दिया. वही अंकुश नारंग ने कहा कि सिर्फ अपना चेयरमैन बनाने के लिए भाजपा ने सदस्यों की संख्या 35 से घटाकर 21 कर दी. इससे उन 14 दलित पार्षदों को अपने अधिकारों से वंचित होना पड़ा, जो अपने क्षेत्र और दलित समाज की आवाज उठा सकते थे.

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