Caste discrimination and violence: हाल मेंउत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के अमेठी (Amethi) जिले से चौकाने वाली खबर सामने आई है जहाँ दलित युवकों पर हमले का एक मामला सामने आया है, जिसमें कथित तौर पर उनकी जाति पूछने के बाद लाठी-डंडों से पीटा गया, जिससे तीन लोग घायल हो गए। पुलिस ने इस मामले में शिकायत दर्ज कर ली है। तो चलिए आपको इस लेख में पूरे मामले के बारे में विस्तार से बताते है।
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जानें क्या है पूरा मामला?
बीते दिन अमेठी (Amethi) के इन्हौना थाना (Inhauna Police Station) क्षेत्र में जातिगत विवाद का मामला सामने आया है। यह घटना 10 जून मंगलवार की शाम भीखीपुर गांव (Bhikhipur Village) के पास हुई। पूरे जहांगीर मजरा फत्तेपुर (Jahangir Mazra Fatepur) के तीन युवक सुनील, राज और आशीष इस्लामगंज चौराहे से लौटते समय भीखीपुर पंचायत भवन (Bhikhipur Panchayat Bhawan) के पास रुके थे। इसी बीच भीखीपुर गांव (Bhikhipur Village) के आरिफ, अनीस, शहमा, मोहम्मद जुनैद समेत अन्य लोग वहां पहुंच गए। उन्होंने पहले युवकों से उनका नाम और जाति पूछी। जैसे ही युवकों ने बताया कि वे हरिजन समाज (Harijan Samaj) से हैं तो आरोपियों ने जातिसूचक गालियां देते हुए उन पर लाठी डंडे से उन पर हमला कर दिया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पीड़ित सुनील के मुताबिक वे लोग कह रहे थे कि थोड़ी देर बैठेंगे फिर चले जाएंगे। इसके बावजूद आरोपियों ने लाठी-डंडों और लात-घूसों से हमला कर दिया। इस हमले में तीनों युवकों के सिर और चेहरे पर चोटें आई हैं। वही इन्हौना थाना प्रभारी प्रदीप सिंह ने बताया कि पीड़ितों की तहरीर पर कार्रवाई शुरू कर दी गई है। सभी घायलों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सिंहपुर भेजा गया है। पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है जल्द ही अरोपियो को पकड़ सख्त सजा दी जाएगी।
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दलित हिंसा मामलों की स्थिति और आंकड़े
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक दलितों पर अत्याचार के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हुई है। 2018 से 2022 के बीच दलितों पर अत्याचार के मामलों में करीब 35 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 2022 में दलितों पर अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में दर्ज किए गए। कुल मामलों में से करीब 98 फीसदी मामले इन राज्यों में दर्ज किए गए। मारपीट के अलावा दलितों के खिलाफ बलात्कार, हत्या, अपमान और सामाजिक बहिष्कार के मामले भी सामने आते रहते हैं। दलितों पर अत्याचार के आरोपियों की सजा की दर काफी कम है।
2022 में यह दर 34 फीसदी थी, जबकि 2018 में यह 42 फीसदी से ज्यादा थी। इससे पता चलता है कि कानून के बावजूद अपराधियों को सजा दिलाने में चुनौतियां हैं। एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामले बड़ी संख्या में लंबित रहते हैं, जिससे न्याय में देरी होती है।