Dalit Massacre in Bihar: बिहार में लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल (1990-2005) को “जंगल राज” के नाम से भी जाना जाता है, जिसके दौरान जातिगत हिंसा अपने चरम पर थी। इस दौरान कई ऐसे भीषण दलित नरसंहार हुए, जिसने राज्य की राजनीति को हिलाकर रख दिया और तत्कालीन सरकारों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। तो चलिए आपको इस लेख में बिहार के 5 सबसे बड़े दलित नरसंहार के बारे में बताते है।
लालू प्रसाद यादव पर ‘जंगल राज’ के आरोप
लालू प्रसाद यादव ने 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर सामाजिक न्याय का नारा बुलंद किया था। जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से निकले लालू ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करके पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों को राजनीतिक आवाज़ दी, जिसके चलते उनके समर्थक उन्हें ‘दलितों और पिछड़े वर्गों का मसीहा’ कहने लगे। हालांकि, आलोचक उनके 1990-2005 के शासनकाल को ‘जंगल राज’ बताते हैं, जहां अपराध और नरसंहार अपने चरम पर थे, खास तौर पर दलितों और पिछड़े वर्गों को निशाना बनाया गया। संक्षेप में, लालू का कार्यकाल सामाजिक न्याय के प्रयासों और बिगड़ती कानून व्यवस्था के गंभीर आरोपों का मिश्रण था।
बिहार के 5 सबसे बड़े दलित नरसंहार
लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार Laxmanpur Bathe massacre (1 दिसंबर 1997) – यह बिहार के इतिहास के सबसे भीषण दलित नरसंहारों में से एक है। अरवल जिले के लक्ष्मणपुर बाथे (Laxmanpur Bathe village) गांव में रणवीर सेना (उच्च जाति के जमींदारों की निजी सेना) के सदस्यों ने 58 दलितों, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, की नृशंस हत्या कर दी थी। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था और लालू प्रसाद यादव की सरकार पर कानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफलता के गंभीर आरोप लगे थे। यह नरसंहार बारा नरसंहार (जिसमें उच्च जाति के लोग मारे गए थे) के प्रतिशोध में किया गया था।
बथानी टोला नरसंहार (11 जुलाई 1996): भोजपुर जिले के बथानी टोला गांव (Bathani Tola Village) में रणवीर सेना ने 21 दलितों, जिनमें 11 महिलाएं, 6 बच्चे और 3 नवजात शामिल थे, की निर्मम हत्या कर दी थी। यह नरसंहार दलित मजदूरों द्वारा मजदूरी बढ़ाने की मांग और सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के साथ उनके जुड़ाव के प्रतिशोध में किया गया था। इस घटना ने भी तत्कालीन सरकार की आलोचना की।
शंकर बिगहा नरसंहार – Shankar Bigha massacre (25 जनवरी 1999)
जहानाबाद जिले के शंकर बिगहा गांव में रणवीर सेना ने 23 दलितों की हत्या कर दी थी। इस नरसंहार में भी महिलाएं और बच्चे शामिल थे। यह घटना भी लालू-राबड़ी सरकार के दौरान हुई थी और इसने राज्य में व्याप्त जातिगत हिंसा और सरकार की निष्क्रियता पर गंभीर सवाल उठाए थे।
मियांपुर नरसंहार (16 जून 2000)
औरंगाबाद जिले के मियांपुर गांव में रणवीर सेना ने 35 लोगों (जिनमें ज्यादातर यादव और कुछ दलित थे) की हत्या कर दी थी। यह नरसंहार अफसार नरसंहार के प्रतिशोध में किया गया था, जिसमें कुछ उच्च जातियों के लोग मारे गए थे। यह घटना भी लालू-राबड़ी शासन के अंतिम वर्षों में हुई थी और इसने जातिगत संघर्षों की भयावहता को उजागर किया था।
बड़ा नरसंहार (12-13 फरवरी 1992)
गया जिले के बड़ा गांव में माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (MCC) ने 35 से अधिक भूमिहारों (उच्च जाति) की गला काटकर हत्या कर दी थी। हालांकि यह सीधे तौर पर दलित नरसंहार नहीं था, लेकिन यह बिहार के जातिगत संघर्षों की उस श्रृंखला का हिस्सा था, जिसमें दलित और उच्च जातियों के बीच खूनी प्रतिशोध चल रहा था। इस घटना को दलितों के खिलाफ हुए पिछले हमलों का बदला बताया गया था, और इसने तत्कालीन लालू सरकार के लिए कानून-व्यवस्था की गंभीर चुनौती पेश की थी।
ये नरसंहार बिहार में दलितों और भूमिहीन मजदूरों के खिलाफ उच्च जाति के जमींदारों की निजी सेनाओं (जैसे रणवीर सेना) और नक्सली समूहों के बीच चल रहे खूनी संघर्षों का परिणाम थे। इन घटनाओं ने न केवल हजारों लोगों की जान ली, बल्कि बिहार की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर गहरा असर डाला और लालू-राबड़ी शासन की आलोचना का एक बड़ा कारण बनीं।