संसद में पेश हुई रिपोर्ट, राजस्थान में दलितों पर अत्याचार के मामले देशभर में सबसे अधिक

Rajasthan Crime, Dalits Caste Discrimination
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Caste crimes soar in Rajasthan: हाल ही में राजस्थान से एक बड़ी खबर आई है। मीडिया रिपोर्ट्स से मिली जानकारी के अनुसार, दलित अत्याचार (Dalit atrocities) के मामले में राजस्थान (Rajasthan) तीसरे नंबर पर है। दलित अत्याचार को लेकर राजस्थान से हर दिन कोई न कोई बड़ी खबर आती रहती है। केंद्र सरकार द्वारा जारी आंकड़े इस बात का साफ संकेत दे रहे हैं। राष्ट्रीय अत्याचार निवारण (National Atrocity Prevention) हेल्पलाइन (14566) पर अब तक 6.34 लाख से ज़्यादा कॉल दर्ज की जा चुकी हैं, जिनमें से 40,228 शिकायतें अकेले राजस्थान (Rajasthan) से आई हैं। तो चलिए आपको इस लेख में पूरे मामले के बारे में विस्तार से बताते हैं।

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राजस्थान में दलितों पर अत्याचार के मामले

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में अनुसूचित जातियों (SC) पर अत्याचार के सबसे ज़्यादा मामले उत्तर प्रदेश के बाद राजस्थान (Rajasthan) में दर्ज किए गए। वहीं, अनुसूचित जनजातियों (ST) पर अत्याचार के मामलों में राजस्थान, मध्य प्रदेश (Rajasthan, Madhya Pradesh) के बाद दूसरे स्थान पर है। 2016 से 2020 के बीच, राजस्थान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण (Prevention of atrocities on Scheduled Castes and Scheduled Tribes) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है।

संसद में पेश आंकड़ों के अनुसार, केंद्र सरकार की एससी/एसटी अत्याचार निवारण हेल्पलाइन (SC/ST Atrocities Prevention Helpline) (14566) पर 2020 से अब तक 6.34 लाख से ज़्यादा कॉल दर्ज की गई हैं, जिनमें से 40,228 शिकायतें अकेले राजस्थान (Rajasthan) से आई हैं, जो देश में तीसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। हालाँकि, इन मामलों में दोषसिद्धि दर में गिरावट आई है, जो चिंता का विषय है।

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चार्जशीट दाखिल करने की मांग

आपको बता दें, राजस्थान में दर्ज 795 गोपनीय शिकायतों में से अब तक ज़्यादातर मामलों में कार्रवाई हो चुकी है, लेकिन कुछ मामले अभी भी लंबित हैं। ये शिकायतें ज़्यादातर पीड़ितों द्वारा या हेल्पलाइन संचालकों के माध्यम से दर्ज कराई गई हैं, जिनमें चार्जशीट दाखिल करने की मांग, राहत की अपील और कानूनी कार्रवाई शामिल हैं।

2020 में जहाँ सिर्फ़ 6,000 कॉल आईं, वहीं 2024 में यह संख्या 1.05 लाख को पार कर गई। यानी लोग अब इस हेल्पलाइन पर भरोसा करने लगे हैं और अत्याचार की घटनाओं की सूचना देने में झिझक नहीं रहे हैं। शिकायतें कानूनी दायरे में दर्ज की जाती हैं।

पीड़ितों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक

आपको बता दें, इन सभी आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए, मंत्री अठावले (Minister Athawale) ने स्पष्ट किया कि किसी भी शिकायत को ‘अत्याचार’ तभी माना जाता है जब वह दो केंद्रीय कानूनों के अंतर्गत आती हो। इसके अलावा, नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 (against untouchability), अनुसूचित जाति और जनजाति (Prevention of Atrocities) अधिनियम, 1989 के तहत, सरकार का कहना है कि इस हेल्पलाइन का उद्देश्य केवल शिकायत दर्ज करना ही नहीं है, बल्कि पीड़ितों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना और समय पर न्याय सुनिश्चित करना भी है।

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