छतरपुर में दलित और आदिवासी सरपंचों की ग्राम पंचायतों में 50:50 फॉर्मूला

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Chhatarpur news: हाल ही में मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले से चौकाने वाली खबर सामने आयी है जहाँ में कई दलित और आदिवासी सरपंचों वाली ग्राम पंचायतें “50:50 फॉर्मूले” पर ठेके पर चल रही हैं। यह जानकारी स्वयं सरपंचों ने दी है. उनका कहना है कि गाँव के कुछ दबंग उन्हें पंचायत का काम करने नहीं देते, जिसके कारण उन्हें पंचायत का कामकाज दूसरों को सौंपना पड़ा है। तो चलिए आपको इस लेख में पूरे मामले  के बारे में विस्तार से बताते हैं.

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50:50 फॉर्मूला क्या है?

दलित उत्पीड़न के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं, जहाँ उनके साथ मारपीट, छेड़छडा, दुर्व्यवहार, किया जाता है या फिर धोखे से उनकी जमीन ले ली जाती है. नहीं तो दबंगों द्वारा उनकी जमीन पर अवैध कब्ज़ा कर लिया जाता है. ऐसा ही एक मामले के बारे में आपको बताते है. जहाँ कुछ दलित और आदिवासी सरपंचों वाली कई ग्राम पंचायतो का आरोप है. उंच जाति के लोग और दबंगों उन्हें  पूर्ण आज़ादी के साथ कम नहीं करने देते है. उन्होंने आरोप लगाते हए कहा दलित और आदिवासी सरपंचों वाली ग्राम पंचायतें “50:50 फार्मूले” पर ठेके पर चल रही हैं.

यह बात खुद गांव के सरपंचों ने बताई है. उनका कहना है कि गांव के कुछ प्रभावशाली लोग उन्हें स्वतंत्र रूप से काम नहीं करने देते, जिसके कारण उन्हें पंचायत का काम दूसरों को सौंपना पड़ता है. दरअसल, जिले की ज़्यादातर एससी-एसटी आरक्षित पंचायतें या तो समझौते से चल रही हैं, या गांव के दबंगों के नियंत्रण में हैं.  कुछ पंचायतों में तो गांव के विकास कार्य और बजट भी 50-50 प्रतिशत अग्रीमेंट पर बाँट लिए जाते हैं. वही धनीराम अहिरवार सरपंच ने रामबाबू से कहा कि पंचायत में जो भी काम होगा, उसमें बचत होगी. हमारी 50-50% की पार्टनरशिप रहेगी. हालांकि बचत हो नहीं पा रही है.

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दलित और आदिवासी सरपंचों की आरोप

दैनिक भास्कर से मिली जानकारी के अनुसार छतरपुर जिले के 5 पंचायतो की जाँच में सरपंचों का आरोप है कि गांव में प्रभावशाली और ताकतवर लोग उन्हें स्वतंत्र रूप से काम नहीं करने देते हैं। इन ताकतवर लोगों द्वारा विकास कार्यों में बाधा डाली जाती है या उन्हें अपनी मर्जी के मुताबिक काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। समाज के कमजोर तबके से आने वाले दलित और आदिवासी सरपंच अपने संवैधानिक अधिकारों का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं. सरपंचों को ताकतवर लोगों के डर और दबाव का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण वे अपनी बात खुलकर नहीं कह पाते हैं.

यह व्यवस्था गांव में विकास कार्यों को प्रभावित करती है, क्योंकि निर्णय लेने की प्रक्रिया और कार्यान्वयन में पारदर्शिता का अभाव होता है. आपको बता दें, 50:50 फॉर्मूला भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकता है, क्योंकि इससे वित्तीय अनियमितताओं की संभावना बढ़ जाती है. यह स्थिति स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र को कमजोर करती है और वंचित समुदायों का प्रतिनिधित्व अप्रभावी बनाती है. यह दलित और आदिवासी समुदायों के प्रति चल रही सामाजिक असमानता को दर्शाता है और उनके सशक्तिकरण में बाधा डालता है.

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