हाल ही में झारखण्ड के गिरिडीह से खबर सामने आई है। जहाँ गिरिडीह (Giridih) ज़िले के बिरनी (Birni) प्रखंड मुख्यालय से लगभग चार किलोमीटर दूर पड़रिया गाँव (Padariya village) में एक दलित परिवार (Dalit Family) 37 वर्षों से देवी दुर्गा की मूर्ति की पूजा करता आ रहा है। तो चलिए आपको इस लेख में पूरी कहानी के बारे में विस्तार से बताते हैं।
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पहली बार 1988 में शुरू हुई थी पूजा
भारत जहाँ कहने को दलितों आज आज़ादी मिल गयी लेकिन आज भी उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है। आज भी मनुवादी सोच के लोग उन्हें अपने साथ बैठ कर खाने नहीं देते, स्कूल में साथ पढने नहीं देते है, उन्हें आज भी मंदिरों में प्रवेश करने से रोक दिया जाता है। लेकिन इन सब के बावजूद भी एक झारखण्ड के गिरिडीह के पड़रिया गाँव एक दलित परिवार ऐसा ही जो बीते 37 साल से दुर्गा मंदिर में पूजा करते आ रहा है।
दरअसल, दलित परिवार के सदस्य रामचंद्र दास और उनके भाई पन्ना दास के अनुसार, यह पूजा 1988 में शुरू हुई थी। इससे पहले, 1986 में जब गाँव में कोई आपदा आई थी, तब उनके घर में एक कलश स्थापित किया गया था। पूजा के बाद कलश विसर्जन के बाद, परिवार में कुछ अप्रिय घटनाएँ घटने लगीं। जिसके बाद ब्राह्मणों से परामर्श के बाद, उनके पिता, स्वर्गीय अनूप दास को देवी दुर्गा की मूर्ति स्थापित करने और पूजा करने के लिए कहा गया।
मिट्टी की दीवारें और फूस के घर बनाए
आपको बता दें, शुरुआत में, बाँस और प्लास्टिक से बने तंबू में पूजा की जाती थी, उसके बाद मिट्टी की दीवारें और फूस के घर बनाए गए। धीरे-धीरे लोगों की आस्था बढ़ी और ग्रामीणों के सहयोग से एक मंदिर का निर्माण किया गया। अष्टमी से ही यहाँ भक्तों का जमावड़ा लगने लगता है और नवमी के दिन, पहले मंदिर में और फिर पूरे गाँव में बकरे की बलि दी जाती है। इतना ही नहीं 9 दिनों तक होने वाली पूजा के लिए भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है।
गाँव के लोगों ने बताया कि देवी माँ की पूजा सबसे पहले नवागढ़ के दिवाकर पांडेय, फकीरा पहाड़ी के भोला पांडेय और लोहारा नवाडीह के सुखदेव पांडेय द्वारा की जाती है। उन्होंने बताया कि पिछले तीन-चार वर्षों से ग्रामीण भी अपनी क्षमता के अनुसार मंदिर निर्माण के लिए आप योगदान दे रहे हैं। इसी के चलते आज भी ये प्रथा कायम बनी हुयी है।