Gonda Crime News: गोंडा में ग्राम प्रधान की गुंडागर्दी! दलित की जमीन पर किया कब्जा, विरोध पर उसके ‘गुंडों’ ने कर दी मारपीट

Dalit's Land Being Occupied In Gonda, Gonda Crime News
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Gonda Crime News: हाल ही में उत्तर प्रदेश ( Uttar Pradesh) से एक गंभीर घटना सामने आई है, जिसमें गोंडा (Gonda)के एक ग्राम प्रधान पर दलित समुदाय की जमीन पर अवैध कब्जा करने का आरोप लगा है। ग्राम प्रधान ने पीड़ित परिवार के साथ मारपीट की और जातिसूचक गालियां भी दीं, जिसके बाद पीड़ित दलित व्यक्ति ने स्थानीय थाने में शिकायत दर्ज कराई है। तो चलिए आपको इस लेख में पूरे मामले के बारे विस्तार से बताते है।

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ग्राम प्रधान पर जबरन जमीन हड़पने का आरोप

दलितों की जमीन पर कब्जा और उन पर ठाकुरों द्वारा अत्याचार पुराने समय से ही होते आ रहे हैं। दबंग ठाकुर समुदाय के लोग दलितों की कृषि भूमि, आवासीय भूखंड या सार्वजनिक भूमि पर जबरन कब्जा कर लेते हैं। जिसके बाद फर्जी दस्तावेज बनाकर, धमकी देकर या बल प्रयोग कर उन्हें उनकी जमीन से बेदखल कर देते हैं। जी हां, ऐसी ही एक खबर फिर सामने आई है जहां उत्तर प्रदेश के गोंडा के शिवदयालगंज थाना (Shivdayalganj Police Station) क्षेत्र के मैनपुर गांव (Mainpur Village) में एक दलित व्यक्ति ने ग्राम प्रधान पर गुंडागर्दी, दलितों की जमीन हड़पने और मारपीट का आरोप लगाया है।

पीड़ित ने मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई है। दरअसल ये घटना बीते शुक्रवार को हुई थी। जहाँ मैनपुर गांव (Mainpur Village) के दुबौली मजरा (Dubauli Mazra) निवासी लायक राम ने अपनी तहरीर में बताया कि बीते शुक्रवार को ग्राम प्रधान उसकी जमीन पर अवैध रूप से सड़क बनाने का प्रयास कर रहे थे।

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मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत दर्ज

जब उन्होंने इसका विरोध किया तो प्रधान ने उनके खिलाफ जाति सूचक अपशब्दों का प्रयोग किया और गाली-गलौज की। इस दौरान डायल 112 की पुलिस रिस्पांस गाड़ी भी मौजूद थी। शनिवार को ल्यूक राम ने थाने में अपनी शिकायत दर्ज कराई। लेकिन जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने मुख्यमंत्री पोर्टल और पुलिस अधीक्षक से मदद मांगी। इसके अलवा इस मामले को लेकर संगठन प्रभारी अभय सिंह का कहना है कि गांव में चुनाव के दौरान ऐसे मामला राजनीतिक रूप से उजागर हो जाता है। उनके अनुसार जांच में मारपीट की पुष्टि नहीं हुई है।

आपको बता दें कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 जैसे कानून दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए मौजूद हैं, लेकिन उनका प्रभावी कार्यान्वयन अक्सर एक चुनौती बना रहता है।

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