Karnataka News: दलित युवक के मंदिर में कदम पड़ते ही बिलबिला उठे जातिवादी, फिर जो हुआ…

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Karnataka caste-based discrimination:  हाल ही में कर्नाटक (Karnataka) से एक खबर आई जिसमें जातिगत भेदभाव  (Caste Discriminations) की एक बेहद भयावह घटना सामने आई। दरअसल, मधुगिरी तालुक (Madhugiri taluk) के कावुंडला गांव (Kavanadala village) में स्वामीनाथ नाम के एक 26 वर्षीय दलित छात्र को मंदिर समिति के सदस्यों ने कथित तौर पर अपमानित किया और रामंजनेया मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया। इस घटना ने विवाद को जन्म दिया, खासकर तब जब इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। तो चलिए  आपको इस लेख में पूरे मामले के बारें में बताते है।

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जानें क्या है पूरा मामला?

रिपोर्ट के अनुसार, स्वामीनाथ, जो अपने रिश्तेदारों से मिलने जा रहे थे, को मंदिर के प्रवेश द्वार पर रोक दिया गया, क्योंकि दलितों को सदियों से मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। स्वामीनाथ ने अपने संवैधानिक अधिकारों का हवाला देते हुए विरोध किया और कहा, “जब गांव में हर कोई मंदिर के अंदर है, तो मैं बाहर क्यों रहूँ? संविधान सभी को समान अधिकार देता है। अगर आप जा सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं जा सकता? क्या आप संविधान का सम्मान नहीं करते?” वही इस बात पर तीखी बहस हुई।

इसके बाद, कथित तौर पर अन्य ग्रामीण भी इसमें शामिल हो गए, जातिवादी (Caste Discriminations) गालियाँ देते हुए और उसे जाने के लिए मजबूर किया। जिसके बाद पीड़ित ने स्वामीनाथ द्वारा बदवनहल्ली पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई गई शिकायत के बाद पुलिस, राजस्व और समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों ने हस्तक्षेप किया। एक शांति बैठक बुलाई गई, जिसमें मंदिर समिति को सख्त चेतावनी दी गई कि जाति के आधार पर प्रवेश से मना करना गैरकानूनी है और कानून के तहत दंडनीय है।

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दलित समुदायों के बीच एक शांति बैठक 

तथापि स्थिति को तुरंत शांत कर दिया गया और स्वामीनाथ को बाद में मंदिर में प्रवेश की अनुमति दे दी गई, लेकिन पुलिस अधीक्षक ने पुष्टि की है कि जाति आधारित भेदभाव की जांच जारी रहेगी और यदि आवश्यक हुआ तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी। वही इस घटना के बाद रविवार को गांव में वोक्कालिगा और दलित समुदायों के बीच शांति बैठक भी हुई।

आपको बता दें, यह घटना कर्नाटक में इस साल जाति-आधारित भेदभाव (Caste Discriminations) का तीसरा मामला है, जो कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद इस सामाजिक बुराई की निरंतर प्रकृति को उजागर करता है। यह इस बात पर भी जोर देता है कि मंदिरों में समान पहुँच को बढ़ावा देने वाले निर्देशों को प्रभावी ढंग से लागू करना कितना चुनौतीपूर्ण है, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहाँ भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण अभी भी गहराई से जड़ जमाए हुए हैं।

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