क्या कहती है BNS की धारा 167, जानें इससे जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बातें

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BNS Section 167 in Hindi: भारतीय दंड संहिता (BNS) की धारा 167, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 167 के समान है, जो लोक सेवकों द्वारा झूठे दस्तावेज़ या अभिलेख तैयार करने से संबंधित है। इसका मुख्य उद्देश्य लोक सेवकों के बीच जवाबदेही सुनिश्चित करना और धोखाधड़ी से होने वाले नुकसान से व्यक्तियों की रक्षा करना है। तो चलिए आपको इस लेख में बताते  हैं कि ऐसा करने पर कितने साल की सजा का प्रावधान है और बीएनएस में व्यभिचार के बारे में क्या कहा गया है।

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धारा 167 क्या कहती है? BNS Section 167 in Hindi

बीएनएस की धारा 167, जिसे पहले सीआरपीसी की धारा 167 कहा जाता था, मजिस्ट्रेट को जाँच प्रक्रिया के दौरान किसी आरोपी को हिरासत में लेने का अधिकार देती है, अगर जाँच 24 घंटे के भीतर पूरी नहीं होती है। यह धारा पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत, दोनों पर लागू होती है और डिफ़ॉल्ट ज़मानत के अधिकार से भी संबंधित है।

बीएनएस में व्यभिचार के बारे में  भारतीय न्याय संहिता (BNS) अब व्यभिचार को आपराधिक अपराध नहीं मानती। यह भारत के सर्वोच्च न्यायालय के 2018 के फैसले के अनुरूप है, जिसने आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया था। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि व्यभिचार एक आपराधिक अपराध नहीं होने के बावजूद, यह अभी भी तलाक का एक वैध आधार है और दीवानी मामलों में इसके परिणाम हो सकते हैं।

बीएनएस धारा 167 की मुख्य बातें

  • बीएनएस की धारा के अनुसार यदि जाँच 24 घंटे के भीतर पूरी नहीं होती है, तो मजिस्ट्रेट आरोपी को पुलिस या न्यायिक हिरासत में भेज सकता है।
  • अधिकतम अवधि – मजिस्ट्रेट, जाँच की प्रकृति और अपराध की गंभीरता के आधार पर, अधिकतम 15 दिन की पुलिस हिरासत और आवश्यकतानुसार 90 दिन या 60 दिन की न्यायिक हिरासत दे सकता है।
  • डिफ़ॉल्ट ज़मानत – यदि निर्धारित अवधि के भीतर आरोपपत्र दाखिल नहीं किया जाता है, तो आरोपी डिफ़ॉल्ट ज़मानत का हकदार है।
  • सशस्त्र बलों के लिए छूट – बीएनएस की धारा 167 उन सशस्त्र बलों के सदस्यों पर लागू नहीं होती है जो सेना अधिनियम, 1950, भारतीय नौसेना (अनुशासन) अधिनियम, 1934 या वायु सेना अधिनियम, 1950 के अंतर्गत आते हैं।

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इसके अलवा आपको बता दें कि धारा 167 के तहत दोषी पाए जाने पर सजा का प्रावधान है कि इस धारा के तहत दोषी पाए जाने पर यदि कोई लोक सेवक किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाने या क्षति पहुँचाने के इरादे से कोई झूठा दस्तावेज़ या अभिलेख तैयार करता है, तो उसे तीन साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह एक ज़मानती, संज्ञेय अपराध है, जिसकी सुनवाई प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा की जाती है। यह अपराध समझौता योग्य नहीं है।

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