BNS Section 187 in Hindi: भारतीय दंड संहिता (BNS) की धारा 187 भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 167 का स्थान लेती है और पुलिस हिरासत और जाँच से संबंधित है। यह धारा मुख्यतः उस स्थिति से संबंधित है जब किसी अभियुक्त की गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर जाँच पूरी नहीं हो पाती है। तो चलिए आपको इस लेख में बताते हैं कि ऐसा करने पर कितने साल की सजा का प्रावधान है और बीएनएस (Bhaarateey dand sanhita) में व्यभिचार के बारे में क्या कहा गया है।
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धारा 187 क्या कहती है? BNS Section 187 in Hindi
- मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ – मजिस्ट्रेट आरोपी को पुलिस हिरासत या न्यायिक हिरासत में रखने का आदेश दे सकता है।
- हिरासत की अवधि – मजिस्ट्रेट अधिकतम 60 या 90 दिनों की अवधि के लिए हिरासत का आदेश दे सकता है, जिसमें से 40 या 60 दिनों की प्रारंभिक अवधि में 15 दिन (लगातार या अलग-अलग) से अधिक नहीं हो सकते हैं।
- डिफ़ॉल्ट ज़मानत – यदि जाँच 60 या 90 दिनों के भीतर पूरी नहीं होती है, तो आरोपी को डिफ़ॉल्ट ज़मानत पर रिहा किया जा सकता है, बशर्ते कि अपराध 10 साल या उससे अधिक के कारावास से दंडनीय न हो, जैसा कि लाइव लॉ हिंदी द्वारा रिपोर्ट किया गया है।
- मजिस्ट्रेट का क्षेत्राधिकार – मजिस्ट्रेट हिरासत का आदेश दे सकता है, चाहे उसके पास मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार हो या न हो। यदि मजिस्ट्रेट के पास क्षेत्राधिकार नहीं है, तो वह आरोपी को उपयुक्त क्षेत्राधिकार वाले मजिस्ट्रेट के पास भेज सकता है।
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बीएनएस धारा 187 का उदाहरण
बीएनएस धारा 187 का उदाहरण कुछ इस तरह से है कि, मान लीजिए किसी व्यक्ति को 100 ग्राम गांजा रखने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है। अगर पुलिस 24 घंटे के भीतर जाँच पूरी नहीं कर पाती है, तो उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाएगा। मजिस्ट्रेट आरोपी को 60 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज सकता है। अगर 60 दिनों के भीतर जाँच पूरी नहीं होती है, तो आरोपी को डिफ़ॉल्ट ज़मानत पर रिहा किया जा सकता है।
बीएनएस धारा 187 सजा
इसके अलवा आपको बता दें कि धारा (Section) 187 के तहत दोषी पाए जाने पर सजा का प्रावधान है कि इस अपराध की सज़ा 10 साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों है। यह एक संज्ञेय और जमानतीय अपराध है, जिसकी सुनवाई प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है।