BNS Section 156 in Hindi: भारतीय दंड संहिता (BNS) की धारा 156, जो अब लागू है, “सरकारी कर्मचारी द्वारा स्वेच्छा से राज्य के कैदी या युद्ध बंदी को भागने की अनुमति देने” से संबंधित है। यह धारा ऐसे सरकारी कर्मचारी के लिए सजा का प्रावधान करती है, जिसके पास राज्य के कैदी या युद्ध बंदी की हिरासत है और जो जानबूझकर ऐसे कैदी को हिरासत से भागने की अनुमति देता है। तो चलिए आपको इस लेख में बताते हैं कि ऐसा करने पर कितने साल की सजा का प्रावधान है और बीएनएस में व्यभिचार के बारे में क्या कहा गया है।
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धारा 156 क्या कहती है? BNS Section 156 in Hindi
भारतीय दंड संहिता (BNS) की धारा 156 यदि कोई सरकारी कर्मचारी, जिसके पास राज्य कैदी (State prisoner) या युद्ध बंदी (Prisoner of war) की हिरासत है, स्वेच्छा से ऐसे कैदी को उस स्थान से भागने की अनुमति देता है, जहाँ उसे रखा गया है।
- यह एक संज्ञेय अपराध है, जिसका अर्थ है कि पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है।
- यह एक गैर-जमानती अपराध है, जिसका अर्थ है कि सामान्यतः जमानत नहीं दी जाती है।
- इसकी सुनवाई सत्र न्यायालय द्वारा की जाती है।
बीएनएस धारा 156 की मुख्य बातें
- यह धारा उन लोक सेवकों पर लागू होती है जो कैदियों की हिरासत के लिए जिम्मेदार होते हैं।
- यह धारा तब लागू होती है जब लोक सेवक जानबूझकर कैदी को भागने देता है, यानी यह जानबूझकर किया गया अपराध है।
- यह धारा राज्य और युद्ध कैदियों की हिरासत सुनिश्चित करके कानून और व्यवस्था बनाए रखने में मदद करती है।
- यह धारा लोक सेवकों को अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सतर्क रहने और कैदियों को भागने से रोकने के लिए प्रोत्साहित करती है।
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बीएनएस धारा 156 उदाहरण – BNS Section 155 Example
बीएनएस (BNS) धारा 156 उदाहरण कुछ इस तरह से है कि…उदाहरण 1 – मान लीजिए, एक जेल अधीक्षक (जो एक सरकारी कर्मचारी है) के पास एक आतंकवादी सरकारी कैदी के रूप में हिरासत में है। यदि जेल अधीक्षक पैसे के लालच में या किसी अन्य इरादे से आतंकवादी को जेल से भागने में मदद करता है, तो उसे बीएनएस की धारा 156 के तहत दंडित किया जाएगा।
इसके अलवा आपको बता दें कि धारा 156 के तहत दोषी पाए जाने पर सजा का प्रावधान है कि इस धारा के तहत दोषी पाए जाने पर अपराध के लिए आजीवन कारावास (Imprisonment for life) या किसी भी प्रकार का कारावास जिसकी अवधि दस वर्ष तक हो सकती है। जुर्माना भी लगाया जा सकता है।