RSS protest against Ambedkar: अंबेडकर ने क्यों किया था आरएसएस का विरोध, क्या थी बाबा साहब की टिपण्णी?

RSS vs BABA Sahab
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RSS protest against Ambedkar: ‘हिन्दू शब्द का असल में कोई अस्तित्व है ही नहीं, ये तो केवल जातियों का समूह है, जो अपने अपने जातियों को महान बनाने में लगे हुए हैं। भारत कभी भी एक हिन्दू राष्ट्र नहीं बनना चाहिए। ये देश के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित होंगे’.  हिन्दू धर्म के खिलाफ इतने तीखे शब्दों का इस्तेमाल करने वाले थे बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर।

आरएसएस क्यों कर रहा सपोर्ट

बाबा साहब हिंदू धर्म में फैले जातिवाद के सख्त खिलाफ थे, और साथ ही वो उन सभी चीजों के खिलाफ थे जो हिन्दू धर्म को बढ़ावा देने का काम करता है। चाहे वो मनुस्मृति हो या आरएसएस। राष्ट्रीय स्वयं सेवा संघ आज भले ही बाबा साहब को अपना आदर्श मानता हो, उनके विचारों को अपनाने का संदेश देता हो लेकिन एक समय ऐसा भी था जब आरएसएस और बाबा साहब ने खुल कर एक दूसरे का विरोध किया था। बाबा साहब की हिंदुत्व के खिलाफ की नीति को आरएसएस कभी स्वीकार ही नहीं कर पाई।

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क्या हुआ आरएसएस और बाबा साहब के बीच

ये समय था 1947 के आस पास का। देश को धर्म के आधार पर बांटने का फैसला किया गया था। एक नया इस्लामिक मुसलमानों के लिए बनाया गया, पाकिस्तान, घोषणा की गई कि जो भी मुसलमान पाकिस्तान जाना चाहते है जा सकते है, और जिन्हें भारत में रहना है वो भारत में रहे। लेकिन आरएसएस ने इसका विरोध किया, वो चाहते थे कि जब इस्लामिक देश बन रहा है तो भारत पूरी तरह से हिन्दू राष्ट्र होना चाहिए  मगर बाबा साहब पहले ही साफ कह चुके थे कि भारत धर्म निरपेक्ष देश है और रहेगा। उन्होंने अपनी किताब पाकिस्तान और भारत का विभाजन में लिखा है कि हिंदुत्व लोकतंत्र के खिलाफ की नीति अपनाते है, हिन्दू राष्ट्र आपसी सौहार्द , भाईचारे और समानता को खत्म करने वाले सिद्धांत को फॉलो करता है। जिसके कारण rss और बाबा साहब दोनों एक दूसरे के आंखों की किरकिरी बन गए।

आरएसएस ने किया खुल कर विरोध

बाबा साहब के विचारों को कभी भी आरएसएस ने स्वीकार नहीं किया। इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण है हिन्दू कोड का विरोध। भारत को आजादी मिलने के बाद देश के पहले कानून मंत्री के रूप में बाबा साहब हिंदू कोड नाम का विधेयक लेकर आए थे, जिसमें कई ऐसी आपत्तिजनक पॉइंट्स थे, जो उस समय पुरुष समाज के लिए नागवार थी। हिन्दू कोड के अनुसार महिलाओं को तलाक लेने का हक, दूसरी जाति में शादी करने का, और पिता की पैतृक संपत्ति में हक देने की बात कही गई थी, इसी के साथ पुरुष के एक से अधिक विवाह पर भी रोक लगाया गया था इस विधेयक का आरएसएस, अखिल भारतीय राम राज्य परिषद, जन संघ, हिन्दू महासभा ने खुल कर विरोध किया था, अकेले आरएसएस ने करीब 75 से ज्यादा सभा की थी जिसमें नए बिल को हिंदू परंपरा और भारतीय संस्कृति पर हमला कहा, इस दौरान अंबेडकर के कई पुतले फूंके गए। जिसके बाद तो अंबेडकर की हिन्दू धर्म को लेकर चिढ़ और बढ़ गई थी।

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आरएसएस की नीति के खिलाफ

आज के दौर में भले ही आरएसएस बाबा साहब को अपना आदर्श मान रहा हो लेकिन यही आरएसएस ने संविधान के खिलाफ कहा था कि संविधान की सबसे बड़ी कमी ये है कि उसमें कुछ भी भारतीय विचारों को दर्शाने वाला नहीं है। सब कुछ विदेशी है तो वहीं बाबा साहब के विचारों को व्यक्त करते हुए उनके पोते प्रकाश अंबेडकर ने आरएसएस के खिलाफ कहा था कि वो भारतीय संविधान को मनुस्मृति में बदलना चाहते हैं। आरएसएस ने कभी भी बाबा साहब के विचारों को फॉलो नहीं किया, वो तो हमेशा से ही सवर्ण जाति व्यवस्था को आगे बढ़ाने, महिलाओं को दबाने और दलितों के विकास के खिलाफ रहे है।

स्वर्णों का हितैषी है आरएसएस

बाबा साहब ने आरएसएस के विचारों के खिलाफ टिपण्णी करते हुए अपने विचार व्यक्त किए थे, वो कहते थे कि आरएसएस जैसे संघ हमेशा के लिए बैन होने चाहिए। उन्हें ये समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे। आरएसएस जैसे संगठन सामाजिक व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए नहीं बल्कि रूढ़िवादी परंपराओं और सोच को थोपने भर के लिए बनाई गई है, जो मानवता के लिए खतरा है।

 

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